BHOPAL. देव प्रबोधिनी एकादशी आज (23 नवंबर) है। पूजन के साथ ही इस दिन से शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही गृह प्रवेश समेत बाकी मांगलिक कार्य भी आरंभ हो जाएंगे। देवउठनी एकादशी को अबूझ मुहूर्त मानते हैं। इस दिन बिना मुहूर्त देखे भी शादी की जा सकती है। नवबंर और दिसंबर में 12 श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। हालांकि, मई और जून 2024 में शादियों के कोई मुहूर्त नहीं होंगे। दो सबसे बड़े मुहूर्त अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर भी शादियां नहीं हो पाएंगी।
मुहूर्त: नवंबर में 5 और दिसंबर में 7 दिन
ज्योतिष के मुताबिक, 23 नवंबर को देव उठने के साथ शादियों का सीजन शुरू होगा। इसी दिन सीजन का पहला मुहूर्त भी है। इसको मिलाकर दिसंबर तक 12 मुहूर्त होंगे। इनमें नवंबर के 5 और दिसंबर के 7 दिन शुभ रहेंगे। 15 दिसंबर से धनु मास शुरू हो जाएगा। इस कारण अगले साल 15 जनवरी के बाद शादियां शुरू होंगी। जो कि 20 अप्रैल तक चलेंगी।
अगले साल मई-जून में शुक्र ग्रह के अस्त रहने से मुहूर्त नहीं
अगले साल 29 अप्रैल को शुक्र ग्रह, सूर्य के नजदीक आ जाएगा, जिससे ये ग्रह 61 दिन तक अस्त रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शुक्र के अस्त हो जाने से शादियों के लिए मुहूर्त नहीं होते हैं। 28 जून को शुक्र ग्रह के उदय होने के बाद शादियां शुरू होंगी और 15 जुलाई को देवशयन होने तक मुहूर्त रहेंगे।
अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी पर नहीं हो पाएंगी शादियां
ज्योतिषियों के मुताबिक, 14 फरवरी 2024 को वसंत पंचमी है। कई जगहों पर इस दिन को शादी के लिए अबूझ मुहूर्त माना जाता है, लेकिन इस बार वसंत पंचमी पर अश्विनी नक्षत्र रहेगा। इस नक्षत्र में शादी नहीं की जाती है। इस कारण वसंत पंचमी पर विवाह मुहूर्त नहीं रहेगा। 10 मई 2024 को अक्षय तृतीया है। ये दिन भी शादियों के लिए बड़ा अबूझ मुहूर्त होता है। इस बार अक्षय तृतीया पर शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण शादी का मुहूर्त नहीं होगा।
देव प्रबोधिनी एकादशी : क्या है परंपरा
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन देव जगाने की परंपरा है यानी पिछले चार महीने से योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को शंख बजाकर जगाया जाता है। दिनभर महापूजा चलती है और आरती होती है। शाम को शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु और तुलसी रूप में लक्ष्मीजी का विवाह होता है। घर और मंदिरों को सजाकर दीपक जलाए जाते हैं। तुलसी-शालिग्राम विवाह नहीं करवा सकते तो सिर्फ इनकी पूजा भी कर सकते हैं।
पुराणों की दो कथाएं…
कथा 1- भगवान विष्णु पहुंचे पाताल लोक में
वामन पुराण के अनुसार, सतयुग में भगवान श्रीविष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीन कदम जमीन दान में मांगी थी। फिर अपना कद बढ़ाकर दो कदम में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए जगह नहीं बची तो बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। सिर पर पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर उन्हें पाताल का राजा बना दिया और वरदान मांगने को कहा। बलि ने कहा, आप मेरे महल में रहिए, भगवान ने ये वरदान दे दिया, लेकिन लक्ष्मीजी ने बलि को भाई बनाया और विष्णु को वैकुंठ ले गईं। जिस दिन विष्णु-लक्ष्मी वैकुंठ गए उस दिन यही एकादशी थी।
कथा 2- विष्णु बने पत्थर के शालिग्राम
शिव पुराण के अनुसार, जालंधर नाम के राक्षस ने इंद्र को हराकर तीनों लोक जीत लिए। शिवजी ने उसे देवताओं का राज्य देने को कहा लेकिन वो नहीं माना। शिवजी ने उससे युद्ध किया, लेकिन उसके पास पत्नी वृंदा के सतीत्व की ताकत थी। इस कारण जालंधर को हराना बहुत मुश्किल था। तब भगवान श्रीविष्णु ने जालंधर का ही रूप लिया और वृंदा के साथ रहकर उसका सतीत्व तोड़ दिया, जिससे जालंधर मर गया। वृंदा को यह पता चला तो उन्होंने विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु को श्राप से छुटाने के लिए वृंदा से विनती की। वृंदा ने विष्णु को हमेशा अपने पास रहने की शर्त पर मुक्ति दी और खुद सती हो गई। वृंदा की राख से जो पौधा बना ब्रह्माजी ने उसे तुलसी नाम दिया। विष्णु ने भी तुलसी को हमेशा शालिग्राम रूप में साथ रहने का वरदान दिया। तब से तुलसी-शालिग्राम विवाह की परंपरा चली आ रही है।